Anna Vow Of Silence : DRAMA
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Anna vow of silence : DRAMA

"Rahiman Jivha Baavri, Kahi gaiSarag Pataal | Aapu To Kahi Bheetar Rahi, Jooti Khat Kapaal " चुप रह कर , असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है , बड़े- बड़े संघर्षों को टाला जा सकता है , कहने का मतलब यह क़ि यह एक ऐसा हथियार है जिसके बल प़र बिना कुछ खर्च किये ही ढेर सारे उद्देश्यों क़ी पूर्ति क़ी जा सकती और वह भी बिना किसी लांछन के , कहावत है क़ि " एक चुप सौ को हरावे " . यानी क़ि चुप रहने के हज़ार गुण है और नुकसान कुछ भी नहीं . कहते हैं क़ि चुप रहने से अस्थिर मन शांत हो जाता है ,सेहत में सुधार होता है , साथ ही और भी अनगिनत फायदे होंगे . तात्पर्य यह क़ि अगर आप किसी संकट में पड़ जाएँ तो मौन व्रत ( चुप्पी साधने का सहारा लें ) , अतीत में भी मौन व्रत धारण करने के अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं. फ़िलहाल यंहा १६ अक्टोबर २०११ ( रविवार ) से समाजसेवी अन्ना हजारे के मौन व्रत की चर्चा करते है .अन्ना जी और उनकी टीम आजकल विभिन्न आरोपों -प्रत्यारोपों से घिरे हुये चल रहें हैं , जिनका संतोषजनक ज़वाब उनके पास नहीं है , और जैसा क़ि कहा जाता है क़ि अन्ना जी झूठ का सहारा लेते नहीं और मौजूदा हालत में अपनी टीम के सदस्यों के बडबोलेपन क़ी वज़ह से वह सच बोल नहीं पा रहे थे , सो समझा जाता है क़ि अन्ना जी ने अपने गाँव वालों क़ी सलाह से सबसे आसान रास्ता अपनाया ( चुप्पी साधने का ) , जिसे पढ़े लिखे लोगों ने "मौन व्रत " का सुधारवादी नामकरण कर रखा है और इसका वह अपनी सुविधानुसार उपयोग कर रहें हैं . ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क़ि, अन्ना के नजदीकी कहें या भरोसेमंद लोगों ने अन्ना के मौन व्रत प़र जाने से पहले , इसकी वजह यह बतायी थी क़ि , दिल्ली के अनशन से वह इतना कमज़ोर हो गए थे , क़ि उन्हें लगा क़ि वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए हैं , इसलिए मौन व्रत रख कर वह ठीक होना चाह रहें हैं . प़र अन्ना जी की गतिविधियों ने यह साबित कर दिया है , क़ि वो पूरी तरह ठीक-ठाक हैं , क्यूंकि वह आने जाने वालों से बराबर मिल-जुल रहें है , और उनके सवालों का लिख लिख कर ज़वाब दे रहें है .यानी क़ि वह बराबर व्यस्त हैं . मौन व्रत तो सिर्फ कहने का है . मतलब सिर्फ यह साधना है क़ि उनके " बोलने की बाईट " टी.वी . में न जाने पाए , ताकि उनके समर्थको द्वारा बाद में यह कहा जा सके क़ि , अन्ना जी ने तो यह कहा ही नहीं , क्यूंकि वो तो मौन व्रत प़र थे , और लिखा हुआ कोई कागज उनके समर्थक कुटी से बाहर ले जाने नहीं देते किसी को , ताकि सबूत बाहर न जा पाए . अरे जब मिलना-जुलना जारी है , सवालों के ज़वाब भी दिए जा रहें हैं तो फिर मन की शांति कैसे मिल रही होगी अन्ना जी को . " मौन व्रत " का सारा का सारा खेल सिर्फ , अन्ना और उनकी टीम की गैर-जिम्मेदारना बयानबाजी से उभरे सवालों के ज़वाब देने से बचने के एक कसरत मात्र दिखायी दे रही है . मौन व्रत की वजह यह है न ? =============== "" प्रशांत भूषण का कश्मीर संबंधी बयान , केजरीवाल का अन्ना को संसद से ऊपर बताना , किरण बेदी का अन्ना को इंडिया कहना , संतोष हेगड़े द्वारा केजरीवाल के बयानों प़र आपत्ति दर्ज करने की बात, अन्ना टीम का लक्ष्य से भटक कर अन्य निजी स्वार्थों संबंधी बयान जारी करने जैसे मुद्दों के ज़वाब देने के अलावा इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्यों द्वारा गाज़ियाबाद स्थित अरविन्द केजरीवाल के घर प़र बने इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यालय प़र अन्ना टीम के सदस्यों का प्रदर्शन और अन्ना के नाम प़र चंदा इकठा करने और अपने -अपने एन.जी.ओ. के खातों में ज़मा कर हिसाब न देने जैसे गंभीर आरोपों के साथ ही जंतर मंतर प़र प्रदर्शन ज़ारी रखने ( चंदे का हिसाब देने तक ) जैसे सवालों का ज़वाब देने से बचने का सबसे अच्छा तरीका " मौन व्रत " ही हो सकता था , भले ही कुछ समय तक के लिए हो . वैसे " मौन व्रत " का फैसला सिर्फ एक छलावा के अलावा और कुछ नहीं है.पता नहीं कैसा है,अन्ना हजारे का ‘आत्म शांति’ के लिए रखा गया यह मौन व्रत ". अरे मौन व्रत रखना ही था तो सिर्फ़ सात दिनों के लिए ही क्यों ? यदि वे २०१४ के चुनावों तक मौन रहें तो लाखों के दुःख दूर हो सकते थे , चैन-अमन कायम रख सकते थे , अपनी टीम के बडबोलेपन के शिकार लोगों को उनके अहंकार से मुक्ति दिला सकते थे , प़र ऐसा वे नहीं कर सकते.. वैसे " मौनव्रत "में असंख्य गुण भरे हैं .अंत में पेश हैं , कविवर रहीम की पंकितयां ..... ,''रहिमन जिव्हा बावरी-कह गई सरर्गा पतार, आप हू तो कह भीतर गई -जूती खात कपार!'' 

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