Police made scapegoat!
कानून और व्यवस्था की लगातार बिगड़ती विस्फोटक हालत से कैसे निपटेगी पुलिस?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
शारदा समूह के गिरफ्तार कर्णधार और उनकी खासमखास देवयानी मुखोपाध्याय को कोलकाता ले आया गया है और इसी बीच मुख्यमंत्री ममता लागू कर दी है।राज्य की चिटफंड कंपनियों के विरुद्ध सेबी के अभियान से अब दूसरी चिटफंड कंपनियों के दरवाजे बंद होने के आसार हो गये हैं। इससे आम लोगों में भारी घबड़हट घबराहट फैलने लगी है। आम लोग ही नहीं, शारदा का हश्र देखते हुए बाकी चिटफंड कंपनियों के कर्मचारियों और एजंटों में भी जनरोष की आशंका पैदा हो गयी है।
कुछ कंपनियों के दप्तर तो बंद होने लगे हैं और कहीं कहीं दूसरी कंपनियों के दफ्तरों में लोग अपना निवेश वापस करने की मांग लेकर जोरदार प्रदर्शन करने लगे हैं। कुछ कंपनियां सेबी की अनुमति के हवाले से अखबारों में विज्ञापन जारी करके अपनी खाल बचाने के फिराक में हैं। लेकिन कर्मचारियों और एजंटों के मैदान छोड़कर भागने की स्थिति में आम लोगों को समाने की उनकी तरकीब भी फेल होने लगी है।
लोग अब किसी भी कीमत पर शारदा के निवेशकों की तरह खामियाजा भुगतने को तैयार नहीं है। इसके अलावा सुदीप्त के पत्र बम का भी भारी असर हो रहा है। सुदीप्त के पत्र में दो सांसदों समेत जिन बाइस लोगों के नाम आये हैं, सत्तावर्ग के वे बेहद प्रभावशाली लोग हैं। इससे दीदी की हालत संभालने के लिए फंड निकालने की घोषणा के बावजूद बवंडर अब थमने वाला नहीं है।
इसी बीच पियाली और देवयानी के बाद सुदीप्त के पूरे महिला ब्रिगेड का खुलासा भी होने लगा है।
इन हालात में बंगाल बर में कानून और व्यवस्था के लिए और खासतौर पर पुलिस के लिए भारी चुनौतियां पैदा हो गयी हैं। पुलिस महकमे में भी इसे लेकर हड़कंप मचा हुआ है।
महानगर के उपनगरीय इलाकों की दो पुलिस कमिशनरियां बैरकपुर और विधाननगर में तो इस सिलसिले में एहतियाती इंतजाम कर लिया गया है। पर हालत तो तब और बिगड़ेगी, जब इन्हीं परिस्थितियों में स्थनीय निकायों और पंचायतों के चुनाव का ऐलान हो जाये, क्योंकि राज्य सरकार किसी भी कीमत पर मतदान के दरम्यान केंद्रीय वाहिनी की मदद लेने को तैयार नहीं है। जबकि पहले से राज्य में राजनीतिक हिंसा और तनाव की विस्फोटक हालत है, जिसे चिटफंड प्रकरण से ताजा ईंधन और आक्सीजन दोनों मिल रहा है।
पुलिस की हालत तो यह है कि मार भी खाये और रो भी न सकें। अफसरान सकते में हैं। परिस्थितियों का आकलन उन्होंने पहले ही कर रखा है। पर दुखवा कासे कहें। वे तो आपस में भी चर्चा करने की हालत में नहीं है। क्या पता कब सीपीएम का तमगा लगा दे कोई सीधे नीति निरधारकों से बात करके या उनकी मर्जी के खिलाफ यथोचित कार्रवाई अपने विवेक से करें ऐसा भी संबव नही है। हर कोई दमयंती सेन या नजरुल इस्लाम बनने को तैयार नहीं है।
हकीकत यह है कि शारदा समूह के फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद हो रहे बवाल को देखते हुए सर्वत्र निवेशक दूसरी कंपनियों के एजंचों पर दबाव बना रहे हैं कि वे उनकी रकम वापस दिलायें। सूद नहीं तो असल ही सही।
ऐसा हुआ तो बाकी कंपनियों का दिवालिया निकलना तय है, वैसे भी निवेशकों को रकम वापस करने की कोई सूरत इन कंपनियों में नहीं है और न उनका कहीं कोई बड़ा निवेश है, जहां से पैसे खींचकर वे मौजूदा संकच का मुकाबला करें। एजंटों पर ही भरोसा है कि वे निवेशकों को समझा बुझाकर शांत रखें। लेकिन पल प्रतिपल की खबर चौबीसों घंटे लोगों क टीवी चैनलों के जरिये मिल रही है और लोगों के धीरज का बांध टूटता जा रहा है। एजंटों के लिए मैदान छोड़कर भागने के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं। फिर लोग तो दीदी के फंड के भरोसे बैठे नहीं रहने वाले। उन्हें हर कीमत पर अपने पैसे वापस चाहिए।
लोग अब स्कीम की मियाद पूरी होने तक इंतजार करने को तैयार नहीं है। मसलन कोलकाता के टैंगरा में ही निवेशकों ने एक ऐसी ही कंपनी के दफ्तर पर धावा बोलकर अपनी रकम वापस करने की मांग कर दी। एजंटों और कर्मचारियों की वे कुछ बी सुनने को तैयार नहीं है। कमोबेश यही हाल राज्यभर में ही । सेबी और बाद में हो सकता है दूसरी केंद्रीय एंजसियों की सख्ती जैसे जैसे बढ़ेगी, आम लोग अपनी रकम वापस कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार होते नजर आयेंग, पुलिस को इसी का अंदेशा है।
पुलिस के लिए चुनौती है कि ऐसी कंपनियों के दफ्तर बंद होने से पहले उन पर वे अपना कब्जा कर लें। पर राज्य सरकार की ओर से ऐसा कोई निर्देश न होने की वजह सेपुलिस अपनी ओर से कोई पहल नहीं कर सकती। विवादों के लिए मशहूर पुलिस अफसर नजरुल इस्लाम ने गृहसचिव को जिन खतरों के मद्देनजर चिटफंड कंपनियों के खिलाफ चेताते हुए पत्र लिखा था, अब वे वास्तव रुप में मुंह बांए खड़े हैं।
अपनी ओर से एहतियाती कार्रवाई करने के लिए पुलिस की न कोई स्वायत्तता है और न आजादी, जबतक कि राजनीतिक निर्णय न हो। विडंबना तो यह है कि हालत बिगड़ने और अंततः अनियंत्रित हो जाने पर ठिकरा पुलिस अफसरान पर ही फूटना है।
इससे बड़ी बात है कि मौके पर हालात से मुकाबला राजनीतिक नेतृत्व नहीं करता , वहां पुलिस को किसी भी स्थिति से निपटना होता है और उनकी ओर से कोई चूक किसी को बर्दाश्त नहीं है।
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