War breaks on Chitfund monopoly!
जिन कंपनियों के खिलाफ केंद्रीय एजंसियां सक्रिय हैं, उनके संकट का फायदा उठाने के लिए दूसरी कंपनियों में आक्रामक वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गयी है।
केंद्र और राज्य सरकारो की ओर से नए कानून बनाकर चिटफंड कारोबार के खिलाफ आम जनता कौ बचाने के बड़े बड़े दावे किये जा रहे हैं। सुदीप्त और देवयानी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की एजंसियां भी हरकत में आ गयी हैं। नए कानून के क्या होगा, इस पर राजनीति के पक्ष विपक्ष केअलग अलग विचार और सुवचन सुनायी पड़ रहे हैं। संवैधानिक तौर पर अपराध हो जाने के बाद नया कानून बनाकर अपराधी को सजी नहीं दी जा सकती। अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त है और उसके मुताबिक यह गोरखधंधा गैरकानूनी नहीं है, तो नये कानून के तहत सुदीप्त और शारदा समूह पर कार्रवाई असंभव है। अभियुक्त की जिरह से नया नया भंडाफोड़ हो रहा है। शंकर सेन से सुदीप्त बनने की कहानी से लेकर देवयानी के मुकाबले किन्हीं निशा छाबर के खाते में निवेशकों के पैसे दजजमा होने की बात भी सामने आ रही है। पर चिटफंड कारोबार पर अंकुश लगने के बजाय इसके और मजबूत होने के आसार हो गये हैं। जिन कंपनियों के खिलाफ केंद्रीय एजंसियां सक्रिय हैं, उनके संकट का फायदा उठाने के लिए दूसरी कंपनियों में आक्रामक वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गयी है।
शारदा चिटफंड घोटाले की सीबीआई जांच की मांग करते हुए माकपा ने आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी के भतीजे पर फर्जी निवेश कारोबार में शामिल होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर पाक साफ साबित होना चाहिए।
बंगाल के छोटे और आम जमाकर्ताओं को हजारों करोड़ का चूना लगा चुके शारदा चिट फंड के मुखिया सुदीप्त सेन की गिरफ्तारी के बाद जहां सेबी और आरबीआई जैसी संस्थाओं ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है, वहीं घबराहट और भय के मारे राज्य में आम आदमी से पैसा उगाह रही कई वित्तीय और दूसरी तरह की कंपनियां इश्तेहार जारी कर सफाई पेश करने लगी हैं।
इसी सिलसिले में बंगाल में एमपीएस समूह ने तमाम अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन छापकर चिटफंड दुनिया की बेताज बादशाहत का दाव ठोंक दिया है। गौरतलब है कि एमपीएस को भी सेबी की शर्तें पालन न करने के कारण सेबी की ओर से शारदा समूह के खुलासे से पहले नोटिस मिला हुआ है। लेकिन उसके खिलाफ अभी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। एमपीएस समूह ने खुद को भूमिपुत्र गोषित करते हुए इस फूलपेजी विज्ञापन के जरिये अपनी संपत्तियों का ब्यौरा देते हुए निवेशकों को बरोसा दिलाया है कि उनके हित सुरक्षित हैं। इसके अलावा एमपीएस ने अभूतपूर्व पहल करते हुए शारदा समूह और दूसरी कंपनियों के बेरोजगार हुए एजंटों और लुट चुके निवेशकों की मदद करने की पेशकश की है। एमपीएस की मंशा शारदा समूह और केंद्रीय एजंसियों के जाल में फंसी दूसरी कंपनियों के अनुभवी एजंटों को अपने नेटवर्क में समाहित करके अपना कारोबार बढ़ाने की है और इसी सिलससिले में वंचित निवेशकों को भी उसने लुभाने की कोशिश की है।एमपीएस ने यह भी बताने की कोशिश शुरू की है कि वह जिस स्कीम के लिए लोगों से पैसे जुटा रही है वह दरअसल चिट फंड नहीं है बल्कि एक खास मकसद के लिए कलेक्टिव इंवेंस्टमेंट स्कीम है। कंपनी की ओर से यह भी बताया गया है कि उसकी स्कीमों में जनता का 1765 करोड़ जमा है।
प्रमुख अखबारों में छपे िस विज्ञापनों में मजा यह है कि इसमें मीडिया और अकबारों में आ रही सूचनाओं को भ्रामक बताते हुए चिटफंड कारोबार में फैली भ्रांतियों से बचने की निवेशकों और एजंटों को सलाह दी गया है और कुछ फर्जी कंपनियों के शिकार एजंटों और निवेशकों के पर्ति गहरी सहानुभूति जतायी गयी है।बाकायदा मोबाइल फोन नंबर के साथ सुबह दस बजे से लेकर शाम चह बजे तक ऐसे तमाम लोगों को बाजार विशेषज्ञों की सलाह लेने की पेशकश की गयी है। इस पर राज्य सरकार की ओर से गठित जांच आयोग के अध्यक्ष श्यामल कुमार सेन का ध्यान खींचा गाय तो उन्होंने प्रिक्रिया देने से इंकार कर दिया और कहा कि कि इस विज्ञापन पर कोई लिखित आपत्ति करें तो आयोग इसका संज्ञान लेगा।इस पूरे प्रकरण में मीडिया की खास भूमिका रही है और मीडिया के एक अंश द्वारा ही इस विज्ञापन को छापा गया है। जबकि जांच एजंसियों ने इस ओर अभी ध्यान ही नहीं दिया है। अतीत में भी ऐसा ही हुआ, जैसे संचयिनी बंद होने पर दूसरी कंपनियां मालामाल होती रहीं और उनपर कोई अंकुश नहीं लगा। जिससे आजकी यह विस्पोटक हालत हुई है।
एमपीएस ही अकेले सफाई देने वाली कंपनी नहीं है, रोजवैली, ऐस्पेन ग्रुप और वारसी ग्रुप आफ कंपनीज जैसी कुछ कंपनियां भी अखबारों और संचार माध्यमों में बड़े बड़े विज्ञापन दे कर अपनी ईमानदारी का गुणगान कर रही हैं। यहां यह भी काफी दिलचस्प है कि शारदा ठगी के बाद इसी तरह की कई कंपनियों के दफ्तरों में तोड़ फोड़ की शिकायतें मिल रही है। रोजवैली ने अपने विज्ञापन में कहा है हम अपने वित्तीय दायित्व चुकाने और जमाकर्ताओं के पैसे लौटाने में पूर्ण सक्षम हैं। इमानदारी का इश्तेहार देने वाली कंपनियों का यह भी आरोप है कि कुछ लोग अपने निहित स्वार्थ के कारण उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं। कुछ तो घबराहट में यहां तक कह रहे हैं कि सारधा की ठगी के बाद हमारे दफ्तरों और प्रतिष्ठानों को लूटने की साजिश रची जा रही हैं। सुराहा फाइनेंस नामकी इसी तरह की एक कंपनी की शाखाओं में तोड़फोड़ हो चुकी है।
इसी बीच सुदीप्त और देवयानी से जिरह के सिलसिले में दो सौ से ज्यादा बैंक खातों और अनेक संपत्तियों का पता चला है। पर सुदीप्त की दोनों पत्नियों और उसके बेटे के बारे में पुलिस कोई सुराग खोज नहीं पायी। इसीतरह देवयानी की ईर्षा बनी निशा चाबर के पास शारदा समूह की नकदी डाइवर्ट होने की खबर का खुलासा होने के बावजूद निशा का पता लगाने में जांच एजंसियां नाकाम हैं।पियाली की तो मौत हो ही गयी, लेकिन शारदा साम्राज्य में सबसे अहम भूमिका निभानेवाले सुंदरी ब्रिगेड की दर्जनों कन्याओं में से सिर्फ देवयानी ही पकड़ी गयी हैं और बाकी से जांच एजंसियां संपर्क भी साध नहीं पायी है। जांच की यह दशा और दिशा के मद्देनजर बच गयी चिटफंड कंपनियों की ताजा गतिविधियां इस संकट से उबरने के बजाय और बड़े संकट का इशारा कर रही हैं।
इसी सिलसिले में गौरतलब है कि अबतक इन दागी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई न करने की वजह पर्याप्त कानून न होना बताया जा रहा है। इसी सिलसिले में केंद्र और राज्य सरकारें नये सिरे से कानून बनाने की कवायद में लगीं हैं।लेकिन तथ्य यह है कि १९७८ में इस मामले से निपटने के लिए जो कानून बना, आज तक उसका इस्तेमाल ही नहीं किया गया। इसका तात्पर्य साफ तौर पर कानून के राज की गैरमौजूदगी के अलावा और कुछ नहीं है। नया कानून चाहे जितना मजबूत हो . उसे अगर लागू करने की मंशा ही न हो और कालाधंधा और कारोबार को राजनीतिक संरक्षण मिलता रहे तो आम लोगों के बचने का रास्त कहां निकलता है?
संचयनी के बाद चिटफंड कंपनियां इसी खामी का फायदा उठाती रही हैं। आगे भी यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है।
सबसे सनसनीखेज तथ्य तो यह है कि राज्य में कागजात पर जो एकमात्र चिटफंड कंपनी है, उसे संबंधित विभाग के रिकार्ड में २००९ से निष्क्रिय बताया गया है और बंगाल में जो सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियां कमा रही हैं, वे १९८२ के चिटफंड कानून के तहत ही पंजीकृत नहीं है। ये तो खालिस फर्जी कंपनियां है जो निवेशकों का पैसा हड़पने के लिए बनायी और बंद की जाती हैं। शारदा समूह भी ऐसी ही कंपनी है। जो बात राज्य लरकार या केंद्रीय एजंसिया बता नहीं रही है, वह यह है कि बतौर चिटफंड कंपनी रजिस्टर्ड न होने की वजह से ही मौजूदा कानून के तहत इन कंपनियों पर कार्रवाई मुश्किल हो रही है।१९७८ को बने प्राइज चिट्सएंड मनी सर्कुलेशन स्कीम ( बैनिंग) कानून का तो आजतक इस्तेमाल ही नहीं हुआ।इस कानून के तहत गैरकानूनी ढंग से पैसा जमा करने की हालत में तीन साल तक जेल का प्रावधान है। १९७८ से लेकर अब तक रिजर्व बैंक, सेबी और आयकर नियमों का खुल्ला उल्लंघन करके अपंजीकृत चिटफंड कंपनियां गैरकानूनी ढंग से पैसा जमा करके निवेशकों और एजंटों के साथ धोखाधड़ी के तहत यह फर्जीवाड़ा चला रही है, लेकिन इस कानून का एक बार भी इस्तेमाल नहीं हुआ।
शारदा ग्रुप चिटफंड कंपनी का ढहना पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार के लिए शुभ नहीं रहा। सत्ता में आने के दो सालों के भीतर अभी तक पार्टी ने जिन समस्याओं का सामना किया है उनमें यह सबसे ज्यादा गंभीर है। हजारों लाखों गरीब निवेशकों की जीवन भर की पूंजी हड़पने वाले घोटाले में तृणमूल मंत्रियों और सांसदों की संलिप्तता के आरोप तेजी से पांव पसारते चले जा रहे हैं।
तृणमूल के शिखर पर नैतिकता का गान गाते हुए पार्टी के सांसदों ने दिल्ली में एक बैठक में संदिग्ध फर्म के साथ किसी भी प्रकार का संबंध रखने वाले नेताओं और सांसदों को सबक सिखाने वाला दंड दिए जाने की मांग की।लेकिन तब सवाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का खड़ा हो जाता है। मुख्यमंत्री शारदा ग्रुप के कार्यक्रमों की नियमित 'अतिथि' थीं। वे अपने श्रोताओं से ग्रुप के चैनल देखने और उसके अखबार पढ़ने की अपील करती थीं और इसे अपने विरोधी मीडिया के मुकाबले एक सुरक्षा ढाल के रूप में देखने के लिए कहती थीं।
पार्टी के नेता इस बात से चिंतित हैं कि उनकी दीदी की धूमिल हो रही साफ छवि शायद धूलधूसरित न हो जाए और उसका उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। शारदा ग्रुप राज्य में होने वाले पंचायत चुनावों से ऐन पहले ढहा है। इस घटना ने तृणमूल नेतृत्व की पेशानी पर बल ला दिया है, क्योंकि निवेशकों में से अधिकांश ग्रामीण गरीब लोग हैं।
सबसे खराब बात यह है कि शारदा प्रबंधन ने निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तृणमूल से अपनी अंतरंगता प्रदर्शित की और अपने कार्यक्रमो में तृणमूल के नेताओं की बड़ी-बड़ी तस्वीरों का प्रदर्शन किया। अच्छा ब्याज देने की लालच देकर हजारों-लाखों निवेशकों से ग्रुप ने पैसे बटोर लिए। जिस तरह का ब्याज देने का वादा किया वैसा कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान नहीं दे रहा था।
केंद्र व राज्य सरकार की जानकारी में चिटफंड कंपनियां बंगाल के गरीबों की कमाई लूटती रहीं। इस लूट से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी वाकिफ थीं और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी। इसके बावजूद सरकार ने इसपर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। रिजर्व बैंक से जुड़े सूत्रों ने इसका खुलासा किया है कि सरकार को कम से कम दो साल पहले से इस गड़बड़ी की जानकारी थी। इसको लेकर हुए वार्तालाप और पत्राचार को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद सोमेन मित्रा ने दो साल पहले वर्ष-2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस संबंध में लंबी-चौड़ी चिट्ठी लिखी। उन्होंने लिखा कि बंगाल में छोटी-बड़ी करीब 800 फाइनेंस कंपनियां चिट फंड के धंधे में लगी हैं। इनका टर्नओवर करीब सत्तर हजार करोड़ तक पहुंच चुका है। इनकी पैठ समाज के व्हाइट कालर लोगों के बीच है। इन्हें कई ब्यूरोक्रेट्स और राजनेता संरक्षण दे रहे हैं। मीडिया और ज्यूडिशियरी में भी इनकी गहरी पैठ है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने तब इस पत्र को गंभीरता से नहीं लिया और इसपर अग्रतर कार्रवाई नहीं हो सकी।
इसके एक साल बाद छह दिसंबर-2012 को रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कोलकाता में मीडिया से बात करते हुए पश्चिम बंगाल की सरकार को इस काले कारोबार के प्रति आगाह किया। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा कि प्राइज चिट एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स एक्ट-1978 के तहद ऐसी योजनाएं प्रतिबंधित हैं। राज्य सरकारों के इस गैरकानूनी मनी सर्कुलेशन को रोकने का अधिकार है। वह यहां रिजर्व बैंक की केंद्रीय कमेटी की बैठक में भाग लेने आए थे। ममता बनर्जी की सरकार ने उनके सुझाव को अनसुना कर दिया।
सुब्बाराव ने जनवरी 2013 में राज्य सरकार की आर्थिक अपराध शाखा (इडी) को पत्र लिखकर इसकी जांच का आग्रह किया। इसके साथ ही उन्होंने बंगाल के दर्जनों निवेशकों द्वारा रिजर्व बैंक को भेजे गए पत्रों की कापियां भी इडी को अग्रसारित की। इसके बावजूद राज्य सरकार ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली। नतीजतन, चिट फंड का काला कारोबार बढ़ता चला गया और कल तक सड़क पर फेरी लगाने वाले सुदीप्त सेन जैसे लोग देखते-देखते अरबों में खेलने लगे।
माइक्रो फाइनेंसिंग में अव्वल बंगाल
डब्ल्यू से शुरू होने के कारण राज्यों की सूची में बंगाल भले ही सबसे अंत में आता है, लेकिन स्माल सेविंग और बीमा कंपनियों के कारोबार के लिहाज से यह राज्य टाप पर है। म्युचुअल फंड में निवेश, बीमा कंपनियों के कारोबार व स्माल सेविंग स्कीम लाने वाली चिट फंड कंपनियों के लिए यह राज्य सर्वाधिक मुनाफा कमाने वाली जगह है। इसी तरह लाटरी के धंधे के लिए भी यह राज्य सबसे मुफीद है।
एक समाजशास्त्री कहते हैं कि आम बंगाली जनमानस काम को लेकर हमेशा से नान प्रोफेशनल रहा है। आए दिन होने वाली हड़ताल और दफ्तरों के हालात इसकी गवाही देते हैं। यहां काम करने वाली कारपोरेट कंपनियां भी गाहे-बेगाहे इस बात को स्वीकार करती रही हैं। कम काम करके ज्यादा मुनाफा कमाने की प्रवृति यहां के लोगों में बहुत पहले से रही है। यही वजह है जो वे बिना मेहनत किए पैसे बनाने के चक्कर में चिटफंड कंपनियों के शिकार हो जाते हैं।
* चिट फंड कंपनियों का बुलबुला वर्ष-2000 से ही फूल रहा है। यह अब फटने के कागार पर है। ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि चिट फंड कंपनियां लोगों का भुगतान नहीं कर पा रहीं। -असीम दासगुप्ता, पूर्व वित्तमंत्री, पश्चिम बंगाल।
14 चिटफंड कंपनियों के दफ्तरों में छापेमारी, 11 गिरफ्तार
पटना जिला पुलिस ने बाढ़ अनुमंडल क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों पर छापेमारी कर 14 चिट फंड कम्पनियों से आठ लाख नकद जब्त करने के साथ 11 लोगों को गिरफ्तार किया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मनु महाराज ने बताया कि बाढ़ स्थित एराइज भूमि डेवलपर प्राइवेट लिमिटेड, एल केमिस्ट इन्फ्रा रीयलिटी प्राइवेट लिमिटेड, धनोल्टी डेवलपर प्राइवेट लिमिटेड, कॉमन विन वेवरेज कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड, एंजील पप्रीटेट प्राइवेट लिमिटेड, स्वसता स्टील इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड, अमृत गंगा एग्रो इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, आईकोर विजन टेकनॉलॉजी प्राइवेट लिमिटेड, पीयर्स एलाईड कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड एवं वेलफेयर डेवलपर प्राइवेट लिमिटेड, बख्तियारपुर स्थित चकरा डेवलपर प्राइवेट लिमिटेड, मोकामा स्थित एक्टिव एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, प्रयाग ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड एवं विविजोर प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं।
छापेमारी के दौरान पुलिस ने इन चिट फंड कम्पनियों के कार्यालय से आठ लाख रूपये, पासबुक, बांड पेपर, परिपक्वता प्रमाण पत्र, जमा करने वाली रसीद, लेजर बुक, कैश बुक आदि जब्त किए हैं। छापेमारी के दौरान इन कम्पनियों के गिरफ्तार कर्मचारियों ने पुलिस को पूछताछ के दौरान बताया कि ये कंपनियां छोटे-छोटे स्थानों पर अपने कार्यालय खोलकर स्थानीय स्टाफ को मोटे कमीशन का लालच देती हैं और गरीब निवेशकों को प्रलोभन देकर उनका एक नेटवर्क बनाती हैं।
शुरूआत में कुछ निवेशकों के बीच परिपक्वता की राशि वितरित कर ये निवेशकों के बीच अपनी पैठ बनाते हैं लेकिन बाद में वे निवेशकों की राशि का गबन कर चम्पत हो जाते हैं। उन्होंने पुलिस को बताया कि इन कम्पनियों में प्रत्येक दिन पचास हजार से एक लाख रूपये जमा होते हैं जिसे कोलकाता स्थित कम्पनी के सीएमडी या मालिक के पास भेज दिया जाता है। इन कम्पनियों में से सील की गई सात कम्पनियों के गबन की राशि गणना प्राप्त दस्तावेजों के हिसाब से करोड़ों रुपये है।
मनु महाराज ने बताया कि ऐसे प्रभावित निवेशकों की संख्या 25 से 30 हजार है और इन कम्पनियों के मालिक या सीएमडी कोलकाता से अपनी कम्पनी संचालित करते हैं जिनके खिलाफ बाढ़ के प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा प्राथमिकी दर्ज किए जाने की कार्रवाई की जा रही है। उल्लेखनीय है कि बिहार के उपमुख्यमंत्री एवं वित्तमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गत 25 अप्रैल को कहा था पश्चिम बंगाल में शारदा कंपनी के घोटाले से सबक लेते हुए राज्य सरकार सूबे में अवैध रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों पर कड़ा शिकंजा कसने जा रही है और इस प्रकार की गतिविधियां संचालित करने वाली कंपनियों का डाटाबेस तैयार किया जा रहा है।
उन्होंने इन कंपनियों की ठगी और धोखाधड़ी से बचाने के लिए एहतियाती उपाय के तहत निवेश कराने वाली कंपनियों का पूरा लेखा जोखा तैयार करने और उनकी कार्य प्रणाली पर करीब से निगाह रखने और और गड़बड़ी पाये जाने पर कार्रवाई करने का निर्देश वित्त विभाग के प्रधान सचिव को दिया था। मोदी ने कहा कि गत दिनों मुंबई दौरे के समय उन्होंने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अध्यक्ष यूके सिन्हा से मुलाकात कर बिहार में गैर कानूनी रूप से कार्यरत नन बैंकिंग कंपनियों पर शिकंजा कसने का अनुरोध किया था।
बिहार सरकार ने 2011 में रोज वेली कंपनी पर लोगों से धन संग्रह करने पर रोक लगा दी थी। विदित हो कि मुस्कान ग्रुप नामक कंपनी ने भी बिहार के निवेशकों को लाखों रूपये का चूना लगाया था। उपमुख्यमंत्री ने कोसी सेंट्रल कोपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी, स्वावलंबी सहकारी समिति, प्रयाग ग्रुप आफ इंडस्ट्री की बिहार में चल रही गतिविधियों के बारे में विभिन्न प्रशासनिक स्रोतों से जानकारी एकत्र करने का निर्देश अधिकारियों को दिया।
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