Freedom of speech
इसके अलावा उन तथाकथित भारतीय बुद्धिजीवियों के दिवालियापन और सिधांतहीनता के प्रदर्शन को देख कर ऐसा लगता है कि जैसे यह लोग आदिकालीन युग में रह रहे हैं जब मानव , मानव न हो कर पशुवत रहता था ,.और तब नैतिकता और चरित्र का न कोई मूल्य था न कोई अस्तित्व था .? सवाल है कि क्या आज हम आदिकालीन युग की ओर वापस लौट रहें हैं और इन बौद्धिक पागलों के पास क्या इस बात का कोई जवाब है, कि अगर उनके चित्रों को या उनके परिवारजनों के चित्रों को फेस बुक में विकृत रूप में डाला जाये तो क्या तब भी वह अपने तथा – कथित आदर्शों पर कायम रहेंगे या फिर अपने बाल नोचने लग जायेंगे
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सरकार की ढिलाई से बहुत से ऐसे कार्य हो रहें है , जो किसी भी सूरत में नहीं होने चाहिए थे , पर लगता है सरकार और उसे चलाने वाले लोग तभी जागते हैं , जब पानी सर से ऊपर गुजर जाता है .
क्या आजादी का मतलब यह है कि हम अपनी उछ्रंखल अभिव्यकित का शिकार किसी को किसी भी रूप में बना सकते है या फिर उसके लिए किसी मानदंड का अपनाना हमारे लिए बाध्यकारी हैं , या फिर हमें असीम स्वतंत्रता प्राप्त है और उस स्वतंत्रता के आधार पर हम किसी के खिलाफ अपनी वैचारिक विकृति के सहारे किसी के ऊपर अपनी अश्लील भावनाओं की बरसात करने की आजाद हैं , चाहे उस से किसी की भावनाओं को कितना भी आघात पहुंचे या फिर उसके प्रतिष्टा के धज्जियाँ ही क्यूँ न उड़ जाएँ .क्या लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी के यही मायने हैं .
क्या देश के कानूनों की शक्तियां ख़त्म हो गयीं हैं या फिर कानून ने अपना कम करना बंद कर दिया है , अराजकता का माहौल की वजह क्या है और यह कब तक बना रहेगा , इसका ज़वाब तलाशने का वक़्त अब आ गया है , अगर अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र से प्राप्त अधिकारों का दुरूपयोग इसी तरह जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हर किसी की इज्जत इसी तरह सरे आम उछलती नज़र आएगी और मर्यादा के नाम पर अमर्यादित लोगों की तूती बोलेगी .
देश को क्या चाहिए , इसे देश वालो को ही सोचना होगा की वह क्या चाहते हैं , एक मर्यादित समाज या फिर आदिकालीन युग में वापसी .
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