Game of Fallacious argument...
शनिवार को बाबा रामदेव प़र एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बटाला एनकाउन्टर के बारे में एक सवाल का जवाब न दिए जाने से कुपित एक व्यक्ति द्वारा बाबा प़र काली स्याही फेंकने के मुद्दे प़र विभिन्न दलों व समाजसेवियों द्वारा एक बार फिर से तर्क- कुतर्कों का सहारा ले कर घटना की निंदा करने का अभियान छेड़ा गया है और आरोपों और प्रत्यारोपों की बौछार की जा रही है.
वैसे आरोप -- प्रत्यारोप करना तो दलों और समाजसेवियों का अधिकार और परंपरा दोनों ही है और इसमें कुछ भी नया नहीं है .
मगर इधर तर्क के बजाय कुतर्कों का सहारा कुछ ज्यादा ही लिया जा रहा है , खास कर समाजसेवी कहे जाने वालों द्वारा . जब शरद पंवार प़र जूता फेंका गया तो लोगों ने व्यंग्य किया और कहा था "सिर्फ एक जूता ही मारा " , साथ ही कुतर्क किया था की जूता मारने के पीछे छिपे कारणों प़र विचार किया जाना चाहिए क़ि आख़िर वाह कौन से करना थे मगर बाबा रामदेव पा जब किसी सिरफिरे ने काली स्याही फेंकी तो उन्हीं लोगों ने बिना सोचे समझे ही आरोप जड़ दिया क़ि ये लोकतंत्र प़र हमला है .
इस तरह की दोधारी मानसिकता को क्या कहा जाये . शरद पंवार और बाबा के साथ जो भी हुआ , दोनों ही गलत और निंदनीय है , और इस तरह के कृत्यों की जितनी भी निन्दा की जाये काम है
मगर इन कुकृत्यों की निंदा करने वाले स्वनाम धन्य ल्लोग भी देश के लिए उतने ही खतरनाक हैं जितने कि पंवार प़र जूता या बाबा प़र काली स्याही फेंकने वाले .
अच्छा हो कि देश के लोग इन दोमुहे लोंगों को पहचान कर उनकी असली मानसिकता को जन जाएँ कि उनका असली उद्देश्य क्या है और ऐसे लोगों के कुतर्कों के जाल में न फंसे .इसी में देश और जनता का भला है .
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