Humare Desh Ki Vyavastha
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humare desh ki vyavastha

Technical analyst
See interview of Jayati Anil Goel
भ्रष्टाचार की चर्चा तो पहले भी होती रही है, भ्रष्टाचार और भारतीय राज्य व्यवस्था का रिश्ता चोली-दामन की तरह कुछ इस तरह गाढ़ा है कि मर्ज बढ़ता ही गया। अब तो यह एक महामारी की तरह फ़ैल गया है। पूरे समाज को नष्ट करने पर आमदा है, जब यह बीमारी इतनी अधिक बढ़ गई तो इसके खिलाफ आवाज उठनी तो स्वाभाविक ही है।

हम आज देखें तो देश की क्या हालत है? घोटालों, भ्रष्टाचार तथा आतंक के साए में आम लोग जी रहे हैं। हम शायद यह मान कर चलते हैं कि भ्रष्ट व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही करने से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा, जबकि जरूरत उस पूरी प्रक्रिया को समझने की है, जिससे भ्रष्ट व्यक्ति पैदा होते हैं और ताकत हासिल करते हैं। यह प्रक्रिया क्या है? इसका हमारी राजनितिक प्रशासनिक शैली से क्या संबंध है? विकास और विषमता के सवाल इस संदर्भ में क्यों प्रासंगिक हैं?

भ्रष्टाचार की चुनौती को समग्र रूप से समझने का एक व्यवस्थित सामूहिक प्रयास, जो देश की अन्य समस्याओं को समझने में भी सहायक हो सकता है, हमें इस प्रयास को बढ़ावा देना होगा। ऐसा नहीं है कि इस देश में ईमानदार राज्य कर्मी या अधिकारी नहीं हैं, पर कुछ लोगों ने अपना वर्चस्व इस तरह स्थापित कर लिया है कि राज्य का केंद्र बिंदु उनके इर्दगिर्द ही घूमता है और वह उसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं तथा अपने घर भरते हैं। इन भ्रष्ट लोगों के मन में बस जनता का शोषण करने की भयानक प्रवृत्ति है। इससे उनकी प्राणशक्ति कमजोर हो गई है और भले ही वह जनता की रक्षा का कथित दावा करें, पर कर नहीं पाते। कभी-कभी तो प्रतीत होता है कि आम और गरीब जनता के माध्यम से जो राजस्व आता है उसकी लूट के लिए एक तरह से बहुत सारे गिरोह बन गए हैं। कहीं न कहीं वह सफेद चेहरा लेकर राज्य के निकट पहुंचकर वह अपना कालाचरित्र धन और पद को सफेद रंग से पोतकर उसे आकर्षक ढंग से सजा लेते हैं। हर जगह पर भ्रष्टाचार व्याप्त है।

निराशावादी नहीं हूं, लेकिन हमेशा यही देखा है कि चीज़ें बद से बदतर हो जाती हैं। हमारे देश की धरती हमेशा अध्यात्म की पोषक रही है। इस धरती पर ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्हें समाज पूजता है, परंतु वो ही महान पुरुष क्या करते हैं सत्ता में बने रहने के लिए वे समाज में ही फूट डालने का काम करते हैं। भारत को जैसे ही अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिलने वाली थी, उसे खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलने वाला था, उसी समय सत्तालोलुप नेताओं ने देश का विभाजन कर दिया और उसी समय स्पष्ट हो गया था कि कुछ विशिष्ट वर्ग अपनी राजनैतिक भूख को शांत करने के लिए देश हित को ताक पर रखने के लिए तैयार हो गए।

खैर, बीती ताहि बिसार दे। उस समय की बात को छोड़ वर्तमान स्थिति में दृष्टि डालें तो काफी भयावह मंजर सामने आता है। भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है। अंग्रेजों के समय तो फूट डालो राज करो की स्पष्ट नीति बनी और बाद में उनके अनुज देसी वंशज इसी राह पर चले। यही कारण है कि देश में शिक्षा बढ़ने के साथ ही जाति पाति का भाव भी तेजी से बढ़ा है। जातीय समुदायों की आपसी लड़ाई का लाभ उठाकर अनेक लोग आर्थिक, सामजिक तथा धार्मिक शिखरों पर पहुंच जाते हैं। क्या यह लोग जाति भेदभाव मिटा सकते हैं?

 

jayati goel

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