chunaav vyavastha
क्यों नहीं संविधान में सुधार करके प्रत्यक्ष लोकतंत्र की तरफ कदम बढ़ाते हैं? प्रत्यक्ष लोकतंत्र से मेरा आशय यह है कि सरकार किसी की भी हो लेकिन फैसले मतगणना के आधार पर जनता करे। अगर परमाणु करार जैसा राष्ट्रीय महत्व का मसला हो तो राष्ट्रीय आधार पर मतदान कराके फैसला लिया जाए। इसी तरह जिला, ब्लॉक, तहसील या पंचायत स्तर के मुद्दों पर फैसले उसी स्तर पर सीधे लोगों के बीच मतदान कराके लिए जाएं।
राजनीतिक दलों को मिलने वाले धन और कोष में पारदर्शिता के लिए स्पष्ट और कड़े प्रावधान किए जाएं। आखिर चुनाव में खर्च होने वाली इतनी बड़ी रकम उनके पास आती कहां से है? चुनाव ही नहीं, पार्टियों की हर राजनीतिक गतिविधि पर खर्च होने वाले धन को लेकर संपूर्ण पारदर्शिता के बगैर व्यवस्था को सही नहीं किया जा सकता। संविधान में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि राजनीतिक दलों का संचालन जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ हो।
देश में इतनी विभिन्नताएं हैं कि अक्सर ऐसी ढेरों बातें या विषय उठते हैं जिन पर एक राय नहीं बन पाती और टकराव की स्थिति बहुत लंबे समय तक चलती रहती है।
यह कभी भी खतरनाक हो सकता है। आज पहली जरूरत है मौजूदा संविधान को सही ढंग से लागू करने वालों की जवाबदेही तय हो। संविधान को लागू करने वाली संस्था सरकार की जवाबदेही संसद तय करती है। वह ऐसा कर नहीं कर पा रही है, तो उसकी जवाबदेही कौन तय करे?
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