M0dern activists
इसी पागलपन का फायदा उठा कर," मीडिया आफ मैनेजमेंट "" के बल प़र आज हिंदुस्तान में तरह - तरह के संगठन कुकुरमुत्तों की तरह दिन- दूनी , रात चौगुनी रफ़्तार से पैदा हो रहें हैं .आठ -दस लोग इकट्ठा . होते हैं ,२००-४०० रु. खर्च कर बैनर -पोस्टर बनवाया और एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर या फिर एक प्रेस -वार्ता कर , पत्रकारों की आवभगत कर अल्प समय में समाजसेवी का तमगा हासिल कर लेते हैं .
एक बार समाजसेवी बन गए फिर क्या , अफसरों के ऊपर धाक बनाने का उनके पास एक ऐसा लाइसेंस हो जाता है जिसके बल प़र वह किसी के ऊपर भी अपना रोब जमाना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मान बैठते हैं .अब जब अधिकार है तो उसका उपयौग - दुरूपयोग करना लाजिमी है , कंही सिक्का चल गया , तो ठीक है , न चला तो अनशन -प्रदर्शन की धमकी तो है ही .
तो बस शुरू जाइये और जुट जाइए , एक समाजसेवी बनने के लिए , प्रमाणपत्र मिला नहीं क़ि, आप की सुख , समृधि का द्वार खुला नहीं .
तो देर किस बात की... बोलो समाज सेवी की जय ............!
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